है चाहत की एक बार फिर जी लूं जो रह गया पीछे, पर अब ये रूह भी अलविदा लेने को है।। है चाहत की एक बार फिर जी लूं जो रह गया पीछे, पर अब ये रूह भी अलविदा लेने को...
हमारी खुशियों को जैसे नज़र लग गई, हर कोई अब बस यही कहता है ! हमारी खुशियों को जैसे नज़र लग गई, हर कोई अब बस यही कहता है !
छूट रहा था साथी सूरज का हाथ हां! वो कुछ उदास सी थी ताकती क्षितिज को पल-पल ढल रही थी रात के सांचे में... छूट रहा था साथी सूरज का हाथ हां! वो कुछ उदास सी थी ताकती क्षितिज को पल-पल ढल रही...
आखिर पाया है उन्होंने भी खोकर बहुत कुछ। आखिर पाया है उन्होंने भी खोकर बहुत कुछ।
कविता पढ़ें और महसूस करें... कविता पढ़ें और महसूस करें...
उदयगिरि पर उदित सूरज, प्रातःकाल में देखकर अपने आप को प्रोत्साहित करेंगे, हाँ सुबह स उदयगिरि पर उदित सूरज, प्रातःकाल में देखकर अपने आप को प्रोत्साहित करेंगे, ...